नमस्कार दोस्तों: आज के इस लेख में हम आपके लिए कृष्णा सुदामा की अनसुनी कहानी लेकर आए हैं, जो कृष्णा ने सुदामा को कीस माया से रूबरू करया , इसके बारे में हम विस्तार से जानेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि यह कहानी हमें क्या सिखाती है। तो देर किस लिए पढ़ना सुरु करते है। या Shree krishna aur Sudama kee kahaanee:
Shree krishna aur Sudama kee Kahani | कृष्णा सुदामा की अनसुनी कहानी
सुदामा श्री कृष्ण के परम मित्र थे दोनों एक साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में पढ़ते थे. एक साथ जंगल में लकड़िया काटने जाते एक साथ भोजन करते और एक दूसरे से अपनी मन की बात कहते थे. एक बार सुदामा ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा माया क्या होती है,, मैं माया के दर्शन करना चाहता हूं श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा फिर कभी बताऊंगा अगले दिन सुदामा ने श्री कृष्ण से फिर से कहा मैं माया के दर्शन करना चाहता हूं, श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा चलो गोमती में स्नान करने चलते हैं दोनों गोमती नदी के किनारे गए अपनी वस्त्र तट पर रखे और नहाने के लिए उतर गए. श्री कृष्ण ने दो डुबकी लगाई और नहाकर वापस लौट आए और पीतांबर पहनने लगे सुदामा ने सोचा एक और डुबकी लगा के मै भी तट पर चला जाता हूं जैसे ही सुदामा ने डुबकी लगाई
भगवान कृष्ण ने सोचा यही सही समय है सुदामा को माया दिखाने का, सुदामा ने अचानक देखा कि गोमती नदी में बाढ़ आ गई है और वह नदी में बहता जा रहे हैं उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। कि वह क्या करें बहते-बहते वह काफी दूर निकल गए किसी तरह सुदामा तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पर पहुंचे वह चलते-चलते एक गांव के पास पहुंचे तभी उन्होंने देखा कि. एक हथिनी अपनी सूंड में फूल माला लिए चली आ रही है हथनी सुदामा के पास आई और उनके गले में माला डाल दी तभी सुदामा ने देखा कि
हथिनी के पीछे-पीछे ढोल नगाड़े बजाते हुए लोग आ रहे थे। लोगों ने महाराज की जय हो महाराज की जय हो का नारा लगाना शुरू कर दिया उन्होंने सुदामा को बताया हमारे महाराज की मृत्यु हो गई है और हमारे यहां की पार्था है कि हथिनी जिसके भी गले में माला डाल देगी वह हमारा नया महाराज होगा
आज से आप ही हमारे राजा हैं सुदामा को राज सिंहासन पर बैठाया गया और राजमुकुट पहनाया गया, सुदामा को यह सपना जैसा ही लग रहा था कि वह राजा बन गया उनका विवाह एक सुंदर सी राजकुमारी से करवाया गया कुछ समय पश्चात सुदामा को दो पुत्र हुए , एक दिन अचानक सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई, राज वेद से उसका उपचार करवाया गया लेकिन उसकी तबीयत बिगड़ती गई और वह मर गई सुदामा बहुत दुखी हो गया उसकी आंखों से आंसू निकल गए और वह फूट फूट कर रोने लगा चारों तरफ भीड़ इकट्ठी हो गई लोगों ने सुदामा को सन्तान दी. और कहा आपको ये सोभा नही देता आप हमारे राजा हैं अगर आप ऐसा व्यवहार करेंगे तो प्रजा का क्या होगा अब आपको आपका कर्तव्य निभाना है हमारे राज्य के पार्था के अनुसार आपको भी रानी के साथ
क्या आपको पता है सुदामा को अपनी पत्नी के साथ चिता पर क्यों बैठना पड़ा
मरना होगा, यह मायापुरी राज्य का नियम है, कि राजा को अपनी पत्नी के साथ चिता पर बैठना पड़ेगा और उनके साथ परलोक की यात्रा करनी पड़ेगी, यह सुनते ही सुदामा चौक गया उसकी सांस रुक गई और हाथ पांव फूलने लगा’ उसने कहा ये कैसा नियम है मैं मेरी पत्नी के साथ चिता पर क्यों जलूँगा’ लोगों ने कहा हमारे राज्य के नियम का पालन तो आपको करना ही पड़ेगा सुदामा अब अपनी पत्नी की मौत को भूल चुका था उसके आंसू बंद हो गए थे अब उसे अपने जीवन की चिंता थी। उसने कहा मै तो मायापुरी का वासी ही नहीं मुझ पर आपका कानून लागू नहीं होता इसलिए मैं चिता पर क्यों जलूँगा’ लोग नहीं माने उन्होंने कहा आप हमारे राजा है और आपके यहां का कानून तो मानना ही पड़ेगा आपको मारना ही पड़ेगा
अब सुदामा अपने लिए रोने लगा उसकी आंखों से आंसू बहने लगे उसने कहा ठीक है, मैं मरने से पहले कुछ एकांत चाहता हूं सुदामा को हथियार धारी सैनिकों ने घेर लिया पत्नी के साथ चिता में बैठने से पहले उसे नदी में नहलाने के लिए ले जाया गया’ डर के मारे सुदामा कांप रहा था उसने जल में एक डुबकी लगाई और जैसे ही उसका सर पानी से बाहर निकाला तो उसने देखा कि वहां पर सैनिक नहीं थे’ नदी के किनारे पर पीतांबर पहने कृष्णा खड़े थे सुदामा फूट फूट कर रोने लगा वह किनारे पर कृष्ण के पास आया श्री कृष्ण ने सब कुछ जानते हुए भी सुदामा से प्रश्न किया सुदामा तुम रो क्यों रहे हो सुदामा ने कहा मैं जहां से आया हूं वह सच है, या तुम मेरे पास खड़े हो यह सच है
श्री कृष्णा हंसने लगे ओर कहा सुदामा तुम्हे अपने प्रश्नन का Ans मिला या नही सुदामा ने पूछा कौन सा प्रश्न श्री कृष्ण ने कहा तुम माया के दर्शन करना चाहते थे ना, तुमने जो देखा अनुभव किया वह सब माया थी’ और तुम जो मुझे देख रहे हो वह सच है मेरे अलावा जो कुछ भी है वह मेरी माया है. जो मुझ में सब देखता है मेरा अनुभव करता है उसे मेरी माया छूती नहीं है। माया मनुष्य को नाचती है लेकिन जो भगवत भक्ति में लीन हो जाता है वह मोह और माया के चक्कर में नहीं फसता,
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निष्कर्ष-
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