हेलो दोस्तो ! क्या आप लगातार दुखी, तनावग्रस्त और थका हुआ महसूस करते हैं और दूसरों की प्राथमिकताओं को अपनी प्राथमिकताओं से ऊपर रखते हैं? अगर ऐसा है तो यह post आपके लिए ही है। हाँ, हम बात कर रहे हैं लोगों को खुश करने की आदतों का खुलासा के बारे में , जो एक चर्चा का विषय बन गई है। तो अगर आपको भी लोगों को खुश करने की आदतों , या Make People Happy in Hindi पढ़ने का शौक है तो, आइए हमारे साथ आपके कीमती समय ना जाया करते हुए इस खुश करने की आदतों का खुलासा के सफर पर।

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लोगों को खुश करने की आदतों का खुलासा

लोगों को खुश करने की आदतों का खुलासा । Habit of making people happy in Hindi

 

अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार के बारे में सोचें, जिसके बारे में आप समझते हैं कि वह लोगों को खुश करने में ही लगा रहता है। वह व्यक्ति उन सबसे अच्छे लोगों में से एक है जिन्हें आप जानते हैं। होगा।

वह हमेशा किसी की भी सहायता करने के लिए तैयार होगा। जब भी कोई जरूरत होगी, तब अपने मदद के लिए उसे याद कर सकते हैं। वह व्यक्ति बहुत खुशी के साथ अपनी निजी जरूरतों का ध्यान रखे बिना आपकी

जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार होगा। क्या आपको निजी रूप से उसका यह व्यवहार बुरा सा प्रतीत नहीं होता ? क्या आप स्वयं इसके पहलुओं पर ध्यान देते हैं ? जैसे—जब कोई
आपसे मदद माँगने जाता है।

तो क्या आप अपना कोई काम-धाम किनारे छोड़कर तुरंत मदद के लिए ‘हाँ’ कह देते हैं ?
अब उससे भी ज्यादा बड़ा मुद्दा यह है। कि आप लगातार खुद को नाखुश, तनावपूर्ण एवं थका हुआ महसूस करते हैं और दूसरों की

प्राथमिकताओं को अपने सिर पर रखते हैं ?अगर ऐसा है तो यह विषय आपके लिए ही है ।
लोगों को ‘न’ कहना एक ऐसी महत्त्वपूर्ण कला है, जो आप अपने आप विकसित कर सकते हैं। यह आपको अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए,

लोगों को खुश करने की आदतों का खुलासा-में आगे क्या हुआ 

चाहे आपका व्यक्तिगत एवं पेशेवर तरीका जो भी हो, उससे मुक्त करता है। एक हद तक यह आपकी उत्पादकता एवं आपके रिश्तों को भी सुधारता है। इसके साथ ही यह आप में आत्मविश्वास तथा शांति देता है,

जिससे आप उस समय अपने आप को ठीक रख सकें । ‘नहीं कहने की कला’ आपको स्वतंत्रता देती है । पर यह कला विकसित करना बहुत ही मुश्किल भरा है। हम में से अधिकांश लोगों के लिए वर्षों के

अभ्यास के विपरीत, इसे पूर्ववत् करने की आवश्यकता होती है। हम में से कुछ के लिए ‘नहीं’ बोलना सीखना हमारे अभिभावकों, शिक्षकों, बॉस, सहयोगियों और परिवार के सदस्यों के साथ प्रतिवाद करने जैसा है।

पर इसका अभ्यास करने लायक है। एक बार जब आपमें पूरे विश्वास एवं सहजता के साथ ‘न’ बोलने की कला आ जाती है और फिर आप पूरी नियमितता के साथ यह करते हैं, फिर आप यह नोटिस करने लगेंगे कि कैसे अन्य लोग

आप समझने लगते हैं. उन सबके बीच आपको बहुत सम्मान मिलता है. उनमें आपके समय के प्रति बहुत सम्मान विकसित हो जाता है और फिर वे आपको अनुयायी के बजाय एक नेता के रूप में देखने लगते हैं।

तो फिर यही असली बात है. क्या आपकी और अधिक जानने की इच्छा है? क्या आप हमेशा लोगों को खुश करने की अपनी इच्छा को रोकना चाहते हैं? अब मैं आपको अपने व्यक्तिगत अनुभव से बता सकता हूं कि बेकार लोगों को कैसे खुश किया जाए।
मैं आपको अपना अनुभव बताऊंगा.

 

पहले मैं लोगों को खुश करने में ही लगा रहता था – Earlier was busy making people happy

 

 

मैं लोगों को खुश करने से थक गया हूँ। यदि आपने मुझे हाई स्कूल या कॉलेज में देखा होता, तो आपको किसी सहायता की आवश्यकता नहीं होती। मैं हमेशा मदद के लिए तैयार रहता था.

सिर्फ आपको मुझसे पूछना ही था । मैं अपनी सारी जरूरतों को किनारे रख आपकी सारी जरूरतों को पूरा करता । ‘हाँ’ कहने की मेरी यह आदत मेरी परिस्थितियों और कई कारणों
के कारण बनी।

फिलहाल, इतना कहना काफी है कि मैं लोगों को सर्वोत्तम संभव तरीके से खुश कर सकता हूं।
लेकिन मेरी हालत बहुत ख़राब थी. हर बार जब मैंने किसी को ‘हाँ’ कहा, तो ऐसा लगता था
कि मैं कुछ सही कर रहा हूँ। मैं दूसरे व्यक्ति को खुश कर रहा था ।

अतः ऐसा निर्णय कैसे पछतावा करने योग्य हो सकता है ? दूसरों को हमेशा ‘हाँ’ कहनेवाली आवाज असल में खुद को ‘न’ कह रही थी। अपने खुद के लिए खर्च करने वाला समय अब मेरे लिए मौजूद ही नहीं था।

जो पैसा दिया गया था, वह अब मेरी जरूरतों व इच्छाओं को पूरा करने के लिए मौजूद नहीं होगा। यह बात पक्की है कि मैंने दूसरों को अपना समय व पैसा इस्तेमाल करने दिया, और इसके साथ ही मैंने उनके शौकों के लिए अपनी मेहनत लगाई,

जबकि अपने शौक मैंने किनारे रख दिए । जैसे – कॉलेज जाते हुए मैंने एक ट्रक पिक कर लिया। अपने दोस्त की मदद के लिए मैं उसका एक प्रमुख सहायक हो गया। जैसा

पहले मैं लोगों को खुश करने में ही लगा रहता था-अब क्या हुआ 

कि आप सोच सकते हैं, मुझे यह हमेशा करने के लिए कहा जाता था।

बहुत बुरी तरह से लोगों को खुश करने के चक्कर में मैं ‘हाँ’ कहने में बहुत जल्दी करता था। कहीं-न-कहीं मेरे दिमाग में पीछे से ‘न’ चलती रहती थी, क्योंकि मैं अपने शौक एवं अपनी प्राथमिकताएँ रोक देता था । सबसे बुरी बात यह थी कि यह आवाज हमेशा ही आती रहती थी।

इस कारण मैं धीरे-धीरे खुद से और उन लोगों से क्रोधित होने लग गया, जो नियमित रूप से मुझसे मदद कराते रहते थे। अब चीजें नीचे की ओर आ गई थीं। हर बार जब भी मुझे किसी के

लिए कुछ करने को कहा जाता तो मैं खुद के बारे में सोचे बिना हमेशा ‘हाँ’ बोलता,

इसलिए दूसरों की मदद के लिए मैं इतना लगा रहता था। पर हर रजामंदी के बाद मेरे भीतर एक असंतुष्टि बढ़ती जाती, जिससे मेरे भीतर कटुता व निराशा आ जाती। समय के साथ मैंने दूसरों की मदद के चक्कर में अपने शौक का त्याग करना शुरू कर दिया;

जबकि मैं जानता था कि इससे मेरे भीतर असंतोष बढ़ता जा रहा है । खुद को आरोपित करने के अलावा मेरे पास कुछ नहीं था । एक पॉइंट में, मैंने यह निश्चित कर लिया कि मैंने बहुत कर लिया है। मैंने फिर दोस्तों की मदद करने की सारी प्रार्थनाओं को दरकिनार करना शुरू कर दिया;

यहाँ तक कि मैंने हर प्रकार के अनुरोध को अस्वीकार करना शुरू कर दिया। फिर जब मैंने खुद से सोचना शुरू किया तो मुझे इस दृष्टिकोण को समझने में अफसोस हुआ। खुद से बढ़ती नाराजगी और घृणा के कारण

वह मेरा त्वरित रिएक्शन था और बहुत ही गंभीर था। अब यह मेरे बहुत वर्षों के प्रयासों और प्रयोगों का फल है कि बहुत ज्यादा गहराई से सोचने के बाद मैंने ‘नहीं’ बोलने की आदत डाल ली है।

हमेशा लोगों को खुश करने और अपनी जरूरतों और इच्छाओं को प्राथमिकता देने के चक्र से खुद को हटाकर, ‘नहीं’ कहने की कला आपको अपनी यात्रा पर अच्छी तरह से स्थापित करेगी। मैं भी

मैं आपको अगले भाग में सिखाऊंगा कि बिना किसी पछतावे के, बहुत समय पहले, बिना किसी कट्टरपंथी दृष्टिकोण के इसका उपयोग कैसे किया जाए।

Thank you for raiding

निष्कर्ष :-

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