और अपनी पत्नी को शंकर भगवान के दिए हुए वरदान के बारे मेंऔर अपनी पत्नी को शंकर भगवान के दिए हुए वरदान के बारे मेंनमस्कार दोस्तों: आज के इस लेख में हम आपके लिए आलसी ब्राह्मण और भगवान शिव की लीला की रहस्यमयी और मजेदार कहानी लेकर आए हैं, जो आखिर कैसे भगवान शिव ने , आलसी ब्राह्मण को सही रस्ते पर लाते है, इसके बारे में हम विस्तार से जानेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि यह कहानी हमें क्या सिखाती है। तो देर किस लिए पढ़ना सुरु करते है। या Bhagwan Shankar aur Brahman ki kahani:
आलसी ब्राह्मण और भगवान शिव की लीला | Bhagwan Shankar aur Brahman
एक गांव में किशोरी लाल नाम का एक आलसी ब्राह्मण अपनी पत्नी कलावती के साथ रहता था. किशोरी लाल आलसी तो था, ही पर वह भगवान शंकर का परम भक्त भी था। वे सुबह शाम शंकर जी की पूजा करता और भगवान शंकर का नाम जपता रहता था किशोरी लाल रोज यही दो काम करता था बाकी समय अपनी आलसी पान की वजह से वह घर में ही सोया रहता था इसी वजह से किशोरी लाल
और उसकी पत्नी के बीच आए दिन अनबन होती रहती थी, सुनते हो जी आज जल्दी से खाना खाकर खेत चले जाओ आज फसल काटनी है। और हां खेत से आते हुए सरसों का सांग भी लेते हुए आना घर में सब्जी बनाने को कुछ भी नहीं है ,आते हुए भूल मत जाना नहीं तो आज खाना नहीं बनेगा, मैं पहले से ही बोल रही हूं पत्नी ऐसा बोल ही रही थी कि किशोरी लाल अपनी पत्नी की बातों को नजरअंदाज करके बिस्तर पर सोने चला जाता है।
कैलाश में बैठी माता पार्वती भगवान शंकर से कहती है, स्वामी यह आपका कैसा भक्त है ऐसा क्या कारण है की आपकी भक्ति तो करता है पर कोई कम नहीं करता आपको तो उसका मार्गदर्शन करना चाहिए , शंकर जी बोले मै सब देख रहा हु पारबती पिछले जन्म में या एक आलसी गधा था। जो एक शिव मंदिर के सामने आकर सोता रहता था सोते-सोते भी उसे मंदिर में भक्तों के द्वारा किए हुए मंत्रो का उच्चारण सुनाई दे जाता था और श्रावण मास में उसकी मृत्यु हो गई इसी कारण इस जन्म में यह मनुष्य रूप में जन्म तो है पर इसका आलसी स्वभाव नहीं गया
सही समय आने पर मै ऊसे उचित शिक्षा दूंगा। तभी किशोरी लाल की पतनी बोली अरे ये क्या तुम वापस सो गए उठो जल्दी और खेत में जोओ आज फसल काटने जाना है , खेत में फसल बहुत बड़ी हो चुकी है अगर आज फसल को नहीं काटा तो उसे जानवर चर जाएंगे नहीं तो कोई चुरा लेगा मेरी बात सुन भी रहे हो, तभी मन में बोली हे भोलेनाथ ना जाने इनका आलास कब खत्म होगा मैं तुमसे तंग आ चुकी हूं कलावती बोलते जा रही थी पर किशोरी लाल को तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। वह चुपचाप बिस्तर पर लेटा हुआ था किशोरी लाल को कुछ बोलता हुआ ना देख कलावती रसोई घर में जाती है और वहां से एक बाल्टी पानी लाकर किशोरी लाल के ऊपर डाल देती है।
आलसी ब्राह्मण और भगवान शिव की लीला | Bhagwan Shankar aur Brahman | Bhakti Kahani
और वह पूरा भीग जाता है ईद किशोरी लाल बहुत गुस्सा हो जाता है और फिर दोनों के बीच बहुत कहां सनी होती है फिर वह गुस्से में घर से निकलकर भोलेनाथ की मंदिर की ओर चला जाता है मंदिर जाकर वह गुस्से में शंकर जी से कहाँ लगता है भोलेनाथ अपनी पत्नी की रोज-रोज की चिक चिक से मैं परेशान हो चुका हूं अगर मैं आपकी भक्ति श्रद्धा पूर्वक की है तो मुझे वरदान दीजिए ऐसा बोलकर किशोरी लाल जोर-जोर से रोने लगता है उसकी भक्ति भाव को देखकर भोलेनाथ स्वयं किशोरी लाल को दर्शन देते हैं और कहते हैं किशोरी लाल तुम मरे परम भक्त हो तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं बोलो तुम्हें क्या वरदान चाहिए किशोरी लाल भगवान शंकर जी को पहले देख तो हरैन रहा जाता है।
फिर शंकर जी को प्रणाम करके उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट करता है हे भगवान मुझे एक ऐसी चीज दीजिए जो मेरी बात सुने और मेरा सारा काम कर दे भगवान शंकर ने कहा ठीक है ये लो मेरा एक छोटा सा तिरसुल इस तिरसुल को तुम जिस चीज पर रखो गे वह अपना काम खुद ही करने लग जाएगा और काम खत्म करने के बाद ही रुकेगा पर हां अगर तुमने काम करते हुए किसी को मना किया तो त्रिशूल हमेशा हमेशा के लिए गायब होकर मेरे पास आ जाएगा भगवान शंकर अपना त्रिशूल किशोरी लाल को दे कर वह से चले जाते है उसे त्रिशूल को पकड़ किशोरी लाल बहुत खुश हो जाता है और मन ही मन सोचता है कि अब से उसे कोई भी काम नहीं करना पड़ेगा फिर वह त्रिशूल लेकर घर जाता है बताता है
और अपनी पत्नी को शंकर भगवान के दिए हुए वरदान के बारे में ऐसे कुछ दिन गुजर जाते हैं किशोरी लाल उस त्रिशूल को पाकर बहुत खुश था उसे उस दिन से कुछ भी काम नहीं करना पड़ता था मैं जिस भी चीज पर उसे त्रिशूल को रख देता वह चीज अपने आप ही अपना काम करने लग जाता था ऐसे ही एक दिन किशोरी लाल को चाय पीना था उसे चाय के बर्तन में त्रिशूल रखा और बोला मुझे एक कप चाय बना दो यह बोलते ही चाय का पतीली में अपने आप ही दूध चीनी और चाय की पट्टी डाल जाती है और फिर उसको एक साथ उबाल कर एक कप चाय बनाकर उसके सामने आ जाती है
आलसी ब्राह्मण और भगवान शिव की लीला | Bhagwan Shankar aur Brahman | Bhakti Kahani
इसी तरह वह हर काम में शकर भगवान की दी हुई त्रिशूल का इस्तेमाल करता घास में पानी देना होता तो वो त्रिशूल से अपने पानी देने वाली पाइप को छूकर पाइप को कहता पाइप यह बाल्टी पानी अपने आप से इन फूलों पर डाल दो पाइप को यह काम बोलकर किशोरी लाल घर के अंदर सोने चला जाता है और उस के सोते ही लाइट चली जाती है लाइट चली जाने के कारण पंखा बंद हो जाता है
पर किशोरी लाल बिना चिंता करते हुए वह अपने हाथ पंखे को कहता है पंखा मुझे गर्मी लग रही है जब तक लाइट ना आए तो मुझे इस पंखे से हवा करो किशोरी लाल के कहे अनुसार हाथ पंख बिना देर किए हवा करने लग जाता है और जैसी लाइट आती है तो हाथ पंखा बंद हो जाता है इस तरह वह अपने हाथ से बिना कुछ काम किया बड़ी आसानी से सारे काम को कर लेता है फिर एक दिन किशोरी लाल को भूख लगी और अच्छे-अच्छे पकवान खाने का मन किया तो खाना खाने बैठा किशोरी लाल मन में ही बोलने लगा कैसा होता
अगर खाना भी अपने आप ही मुंह में आ जाए मुझे हाथ का भी इस्तेमाल न करना पड़े और मैं आसानी से खाना भी खा लूंगा यह सोचकर वह खाली पेट पर त्रिशूल रखकर बोल अच्छे अच्छे पकवान मेरे मुंह में अपने आप आ जाओ ऐसा कहते ही प्लेट से तरह-तरह के पकवान निकाल कर किशोरी लाल के मुंह में जाने लगे तरह-तरह की मिठाई नई-नई स्वाद पकवान और बिना रुके अपने आप ही उसके मुंह में जाने लगे और वह बड़े मजे से उन्हें खाकर आनंद ले रहा था पर ये मजा कुछ देर तक का ही था थोड़ी देर में किशोरी लाल का पेट भर गया
और वह खा नहीं पा रहा था पर खाना था कि रुकने का नाम ही नहीं दे रहा था प्लेट से भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन निकालकर उसके मुंह में जा रहे थे यह देखकर किशोरी लाल परेशान हो गया वह जैसी खाने को मना करने जा रहा था तो उसे भगवान शंकर की बात याद आई कि अगर वह काम करती हुई त्रिशूल को मन करता है तो उसका वरदान हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा यह सब सोते हुए चिल्लाने लगा उस के चिल्लाने की आवाज सुनकर उस की पतनी रसोई घर से बाहर आती है हां और किशोरी लाल को देखकर हैरान हो जाती है फिर किशोरी लाल से उसकी पत्नी खाने को रोकने के लिए बोलता है पर वह शंकर भगवान की दिए हुए वरदान को नष्ट करना नहीं चाहता था
आलसी ब्राह्मण और भगवान शिव की लीला | Bhagwan Shankar aur Brahman | Bhakti Kahani
पर आखिरकार उसे बोलना पड़ा रुक जाओ खाना-वाना आना तो रुक गया पर उसके साथ शंकर भगवान की दी हुई वह त्रिशूल भी गायब हो गई किशोरी लाल त्रिशूल को अपने पास ना देख कर बहुत दुखी हुआ पर अब वह कुछ भी नहीं कर सकता था शंकर भगवान का दिया हो वरदान को उसे खुद ही समाप्त कर दिया था अब तक किशोरी लाल ने त्रिशूल को जो भी काम दिया था उन सबको काम खत्म कब करना है यह भी अनजाने में ही सही बोल दिया था पर खाना खाते समय कब रोकना है यह नहीं बोला था
जिस कारण खाना बिना रुके उसके मुंह तक आता ही जा रहा था हे महादेव मैं समझ गया कि आपने मुझे ऐसा वरदान मुझे सबक सिखाने के लिए दिया था मैं कितना बेवकूफ था जो आलस के कारण हर छोटे से छोटे काम को टाल दिया करता था आपने मुझे सिखा दिया है कि छोटे-छोटे काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहने से कितनी बड़ी मुसीबत आ सकती है उसे दिन के बाद से उस ने आलास करना छोड़ दिया और वह रोज खेत जाने लगता है और अपना काम खुद करने लगता है इस तरह उसका जीवन खुशहाल हो गया
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निष्कर्ष-
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